आज भी याद है वो मुलाकात...(भाग-५)




चौथे भाग में हुआ प्यार फिर बीच में आ गई पैसे की दीवार...
अब पांचवे भाग में होगा चमत्कार और होगा फूलों का हार...
आज भी याद है वो मुलाकात वो चमत्कार वो फूलों का हार...

कुछ महीने बस ऐसे ही बीत गये थे...
जैसे जिस्म तो था मगर जान से गये थे...

फिर एकदिन ऐसा हुआ,
मेरे मम्मी पापा मंदिर से बाहर आये,
और पापा ने सब भिक्षुको को थोड़े थोड़े पैसे दिये...
और अपनी गाड़ी की तरफ चल लिये...

तभी पिछे से किसीने जोर से आवाज लगाई...
रुक जाओ अंकल,
आपका पर्स गिर गया था वो मैं देने आई...
मेरे पापा ने पर्स लेकर बराबर देख लिया...
पर उस लड़की का एकबार भी शुक्रिया नहीं किया...
कुछ पैसे निकाले और उस लड़की को देने लगे,

यह देख उस लड़की ने कहा,
अंकल ये तो फर्ज था मेरा...
इतने उजाले मे क्यूँ करते हो अंधेरा...
इस पैसे का तो क्या है,
ये आज यहां है कल वहां,
तो परसों कहीं और उड़ जायेगे बनकर परिंदा...
पैसे देकर मुझे यू न करो शर्मिंदा...

ऐसा कहकर वो लड़की वहा से चली गई...
और मेरे पापा की आंखे फटी की फटी रह गई...
पहलीबार उनका घमंड चकनाचूर हुआ था...
वो भी किसी लड़की के हाथो हुआ था...

रात तक तो वो कुछ खोये खोये से रहे...
मगर बाद में पूरी रात जैसे चैन से सोये रहे...

फिर दूसरे दिन जब सुबह मेरे पापा की खुली थी आंख...
उनका वो सारा घमंड जैसे उड़ गया था बनकर राख...
मैं सोचता रहा की एक रात मे ऐसा क्या हो गया...
मानो जैसे कोई चमत्कार हो गया...

फिर तो वो कुछ अलग और बदले बदले से नजर आने लगे...
मगर जैसे भी थे वो बडे खुश नजर आने लगे...

फिर दो तीन दिन के बाद मेरे पापा ने मुझसे कहा,
तु जिस लड़की से करता है बेहत प्यार...
उस लड़की से मुझे नहीं मिलवाएगा मेरे यार...
जा मेरे बेटे,
उस लड़की और उसके पापा से कह दे जाकर...
कल हम उनके घर आएंगे रिश्ते की बात लेकर...

उस दिन पापा की ये बात सुनकर...
मैं खुशी के मारे रो पडा वो भी पापा को गले लगाकर...
उस दिन मेरी खुशी का न था कोई ठिकाना...
एक पल तो ऐसा लगा कि शायद कोई सपना था,
मगर वो सपना नहीं वो दिन था बडा सुहाना...
मिल गया जैसे फिर जीने का बहाना...

बस मैंने मन ही मन तय कर लिया कि,
ये खुशखबरी फोन से नही उसके घर जाकर,
मैं खुद मीरा को बताऊंगा...
उस पल उसके चहरे का नूर देखकर,
मैं फिर से जिंदा हो जाऊंगा...

फिर तो मैं उड़ते घोड़े पे सवार...
सीधा पहुच गया मीरा के घर के द्वार...
लेकर उसके हाथो में हाथ...
बता दी उसको मैंने सारी बात...

सुनते ही वो मुझे गले लगाकर रोती रही...
मगर आंखों से आँसू नहीं खुशी के मोती बहाती रही...

फिर दूसरे दिन हम सब पहुंचे मीरा के घर...
वो भी खुशियो कि सौगात लेकर...

अबतक मेरे पापा को मालूम भी नही था,
कि मंदिर वाली लड़की और मेरी मीरा दोनो एक ही है,

जब मीरा सब के लिए चाय लेकर आई...
तब पापा को पता चली सारी सच्चाई...
और पापा ने सबके सामने एक बात बताई...
कहा बेटे मोहन,
तेरी पसंद सचमुच बडी प्यारी है...
आज से मीरा हमारे घर की दुलारी है...

फिर हम सब मंदिर गये,
लेते हुए प्रभु का नाम...
हाथ जोडकर किया प्रभुको सत सत प्रणाम...

फिर हमारी शादी हो गई और आ गई जीवन में,
खुशियो कि बहार...
आज भी याद है वो मुलाकात वो चमत्कार,
वो फूलों का हार...





                                                                                               ...VIMALMPATEL