आज भी याद है वो मुलाकात...(भाग- ૪)


पहले दोनो में तकरार हुई और दोनो ने किया इंतजार...
फिर दोनो ने किया एक-दूजे से मोहब्बत का इज़हार...
अब चौथे भाग में दोनो में प्यार तो बहुत हुआ मगर बीच में आ गई पैसे की दीवार...
आज भी याद है वो मुलाकात वो चोकोबार वो पैसे कि दीवार...






वो मिडल क्लास लड़की थी मैं पैसेवाला लड़का था...
फिर भी हमारे बीच में ना कोई छोटे-बड़े का पर्दा था...

हम एक दूजे के संग ऐसे जुड़ गए थे...
बस खुशियां ही खुशियां थी,
बाकी सारे ग़म कही ओर मुड़ गए थे...

रोज मिलते थे,
कभी बाग में तो कभी सागर किनारे...
वो मेरे सहारे मैं उसके सहारे...
कभी वो रूठती तो मैं उसे मनाता...
उसकी तारीफ में कुछ कविताएं सुनाता...
उसकी प्यारी आवाज़ पर मैं शब्द बन जाता...

कभी हम मूवी भी देखने जाते...
तो कभी मॉल गुम आते...
हाथो में हाथ लिये प्यार के गीत गाते...
रोज हम फोन पर भी ढेर सारी बाते करते...
बातों मे क्या करते,क्या ना करते...
और बस प्यारी प्यारी बाते करते...

कभी-कभी अपनी कार से उसको घर तक छोड़ आते...
तो वो बाय भी कहती बड़े प्यार से जाते जाते...
उसकी छोटी-छोटी ख्वाहिशें भी मैं पूरी करता था...
कभी पिज्जा तो कभी पानी पुरी खिलाता था...
कभी कैडबरी तो कभी चोकोबार ले आता था...

पता भी न चला कैसे दिन महीना साल बीत गया था...
वो इक्कीस की और मैं तेईस का हो गया था...
अब हम दोनो ने तय कर लिया था...
करके शादी जन्मोंजन्म के लिये एक-दूजे से जुड़ना था...
फिर चाहे जो भी हो अंजाम पीछे नहीं मुड़ना था...

उसके घर से हा थी मगर मुझे मेरे पापा को पटाना था...
कुछ भी करके उन्हें हमारी शादी के लिये मनाना था...
पर क्या करे वक़्त ने किया हम पे सितम.. 
जो देखे थे ख्वाब मिलकर हमने,
वो अब दिख रहे थे होते हुए ख़तम...

वो थी मिडल क्लास की परी और मैं पैसेवाला राजकुमार...
हम दोनो के प्यार के बीच खिंची गई पैसो की दीवार...

जब मैंने घर जाकर मेरे पापा को सारी बात बताई थी...
तब उनके आगे मेरी एक न चल पाई थी...

उन्होंने मुझसे कहा,
ये उम्र ही ऐसी है जहा प्यार के छिलके पर हर कोई है फिसलता...
इस प्यार मोहब्बत में कुछ भी नहीं मिलता...
सबकुछ यह पैसा है जिससे तू कुछ भी है खरीद सकता...
यह मिडल क्लास वाले जो एक साल में कमाते है...
उतने तो हमारी गाड़ियों के पेट्रोल में चले जाते है...
अब ऐसे लोगो से हमारी क्या बराबरी...
इन पैसो से ही तो है इज्ज़त हमारी...

अब क्या समझाए उन्हें जिन्होंने पैसों की चादर है ओढ़ी...
इन पैसों की चादर से मेरे प्यार की रज़ाई है चौड़ी...

मैंने तो तय कर लिया था,
शादी जिससे करूंगा वो होगी मेरी मीरा...
वरना जिंदगीभर रहूंगा कुंवारा...

कुछ भी हो मैं तो रोज उससे मिलता था...
वो उदास होती तो उसे सहारा देता था...
उसके आंसुओ को मैं पोंछ लेता था...
उसे रोज मैं हमारे प्यार की जीत का भरोसा देता था...

हमे यकीन था की हमारा वक़्त भी बदलेगा...
जिसने बिछाये है कांटे वही फूलों का गुलदस्ता भी देगा...
बस इसी यकीन के सहारे हम भगवान कि पूजा करते थे बारम्बार...
और अर्जी करते थे कि वो हमारी प्यार कि नैया को लगा दे पार...
आज भी याद है वो मुलाकात वो चोकोबार वो पैसे कि दीवार... 


To Be Continued
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