आज भी याद है वो मुलाकात...




पहले भाग में हुई थी मुलाकात के साथ मीठी
तकरार...
और जिसे देखते ही हुआ था मुझे प्यार...
दूसरे भाग में है इंतज़ार...

आज भी याद है वो मुलाकात वो तडप वो इंतज़ार...
आंखों के सामने उसका ही चेहरा आता था बार बार...

दिन को जहा भी देखू वो ही नजर आती थी...
रात को सपने मे आकर मेरी नींद उड़ा जाती थी...
कब रात सोये और दिन जागे...
और मेरा दिल बनके पवन उसके पीछे भागे...

मेरा नाम मोहन मुझे अपनी राधा को ढूंढना था...
बजाकर बांसुरी उसे अपनी ओर खींचना था...
अब तो कैसे भी उसका पता लगाना था...
अपने अंदर के व्योमकेश को जगाना था...

फिर तो मैंने उस चौराहे पर अपनी नजर जमाई थी...
जिस चौराहे ने मुझे उसकी सूरत दिखाई थी...
मैं तो नज़रे जमाए बैठा था कर रहा था बस उसका ही इंतज़ार...
कुछ ही दिनों के बाद वो दिखी उसी अंदाज मे अपने स्कूटर पे सवार...

उसे देखते ही मैंने अपने पागल दिल को थोड़ा संभाला...
क्योंकि उसे लगता था सामने खड़ी है वो लेकर फूलों की वरमाला...

फिर मैंने चुपके से उसका पीछा किया,
अब वो थी आगे आगे,
और मैं था पीछे पीछे,
देख लिया पहले कॉलेज और फिर उसका घर...
खत्म हुआ उसे ढूंढने का मेरा सफर...

फिर तो रोज जैसे तैसे थोड़ा वक़्त निकालता...
कभी कॉलेज के बाहर चाय की दुकान के पास,
तो कभी उसके घर की गली के बाहर एक पेड़ के पास पहुंच जाता...
वो दिखे तो दिल को चैन और ना दिखे तो दिल बेचैन हो जाता...

कभी-कभी जब वो मेरी ओर देखती,
तो मैं पेपर या पेड़ के पीछे अपना चेहरा छुपाता...
अब तो यार भी पूछने लगे थे क्यू कुछ दिनो से
फोन नहीं उठाता...
न मिलता है एकबार...
अब क्या बताऊ उन्हें की मुझे हो गया था प्यार...
रोज मैं करता था मेरी जान का इंतज़ार...

उसकी एक झलक देखने को मेरा दिल रहता था बेकरार...
आज भी याद है वो मुलाकात वो तडप वो इंतज़ार...


To Be Continued
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